शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

मंजिल की तलाश!















राह के मुसाफिर को मंजिल की तलाश है।
मौत भी तो जिंदगी के ही पास है।।
जिंदगी भी तो तभी तक है, जब तक सांस है।
फिर भी ऐ मन, तू क्यों उदास है।।
      तू चलता जा जिंदगी के सफर पर।
      मिलेगी हर मंजिल तूझे,पर सब्र कर।।
      हर डगर की अपनी एक लहर होती है।
      कहीं पगडंडियां, कहीं पक्की सडक होती है।।
खेत भी मिलते हैं, औ जंगल भी होते हैं।
राह—ए—सफर पर, रास्ते में कंकड भी होते हैं।।
कभी कांटे, तो कभी फूल मिलते राहों में।
कभी धूल, तो कभी शूल मिलते राहों में।।
       है हौसला अगर जो तूझमें, पूरा यकीन है।
       मंजिल—ए—सफर पर, तुझको यकीन है।।
       चलता जा सफर पर, बढाता जा कदम को।
       घटती जाएंगी दूरियां, हर कदम—कदम पर।।
राह के कंकड़ अगर, पावों को भेद जाए।    
कंकरीली—पथरीली राहों पर, लहू की रेख खींच जाए।।
यही पहचान होगी तेरी, सफलता—ए—राह की।
यहीं पूरी होगी तेरी, राह—ए—तलाश की।।
       दर्द अगर होगा तूझे, उठेगी चीत्कार जो।
       बस इतना समझ लेना, मंजिल है पास को।।
       हौसला मत हारना, मुकद्दर को मानना।
       जिंदगी हसीं है, तू बस इतना ही जानना।।
रावण का वध करने को, राम निकले थे सफर पे।
अयोध्या से चलकर, वन पहुंचे थे सफर से।।
हार जो मान ली होती, किष्किंधा पहुंच कर।
सीता की खोज होती कैसे, चढ़ाई होती लंका पर।।
        ना सुग्रीव से मित्रता होती, ना हनुमान मिलते।
        ना समुद्र पार होती सेना, ना लंका को जीतते।।
        ना रावण का वध होता, ना त्रिलोक में गान होता।
        ना भारत भूमि का, लंका तक विस्तार होता।।
राम के पूरे जीवन में, जिंदगी का राग था।
पूरा जीवन उनका, पल—पल संग्राम था।।
देव होकर जिनके, जीवन में नहीं आराम था।
फिर मानव होकर तू, क्यों डरता संग्राम से।।
        चलता जा सफर पर, बढ़ता जा डगर पर।
        मिल ही जाएगी मंजिल, इतना यकीन कर।।
        दुनिया में कोना और छोर भी होता है।
        सफलता—ए—राह में,दुनिया का जोर होता है।।
फिर भी कितनों को मंजिल मिली,राह—ए—सफर पर।
तू भी चल उसी राह पर, संभल—संभलकर।।
मंजिल तक पहुंचने से, कोई ताकत रोक नहीं सकती।
मौत तो है सिलसिला, जिंदगी नहीं थकती।।
—अनीश कुमार उपाध्याय

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