सोमवार, 28 अप्रैल 2014

मतवाली टोली












चल पड़ी मतवालों की टोली।
अब चले तोप,चाहें चले गोली।।
रंग जाए,चाहें खून से चोली।
खेलेंगे अब खून की होली।।

बहुत कर लिया हमने प्यार।
अब ना सहेंगे तेरी ललकार।।
हमने दिए फूल,तूने दिया अंगार।
एक के बदले,अब मारेंगे चार।।

पड़ोसी धर्म भी खूब निभाया।
शांति—सद्भाव तुझे ना भाया।।
सीमा पार तू चढ़कर आया।
काश्मीर को अपना बताया।।

देश में तूने आतंकवाद फैलाया।
अपनों को ही दुश्मन बनाया।।
भाई—भाई को खूब लड़वाया।
हिंदू—मुस्लिम को भिड़ाया।।

निर्दोषों का लहू बहाया।
धर्मस्थल पर आग लगवाया।।
अपनों को बम से उड़ाया।
तब तुझे मुस्लिम नजर ना आया।।

अब मुस्लिम को बताए भाई।
मारे अपनों को केवल कसाई।।
अब जान लो तुम सच्चाई।
नई एकता भारत में आई।।

अब मतवाले तुझे बताएं।
बूंद—बूंद लहू की कीमत चुकाएं।।
देश की एकता उनको भाए।
रक्षा देश की करने आए।।

हिंदू आए,मुस्लिम आए।
सिख—ईसाई वो भी आए।।
भारत के हैं,पाक ना भाए।
देश की एकता की गाथा गाएं।।

देश निराला,सैनिक मतवाला।
जाति—धर्म से दूर रहने वाला।।
कोई गोरा,तो कोई है काला।
भारतभूमि का है रखवाला।।

शीश काट तेरा वो लाएगा।
भारत मां का कर्ज चुकाएगा।।
तुझसे अपना बदला पाएगा।
भारत मां के गीत को गाएगा।।

भारत देश की अजब कहानी।
बूढ़ों में भी आती जवानी।।
वीर कुंवर सिंह थे अभिमानी।
उनकी कहानी,नहीं तुझे बतानी।।

—अनीश कुमार उपाध्याय

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