रविवार, 27 अप्रैल 2014

माधो ! कृष्ण ना भये दस—बीस














माधो!कृष्ण ना भये दस—बीस।
एक तुम्हारे संग जाएंगे मथुरा।।
गोकुल सूना,यमुना सूनी।
गोपियन अंखियां होंगी खूनी।।

माधो!कृष्ण ना भये दस—बीस।
इक तोहे संग मथुरा जइहें,बाकी गोपियन के ईश।।
कइसे रहियें यशोदा मइया,बिन बाल कन्हैया।
नंद बाबा जी ना सकिहें,तड़प—तड़प मरि जइहें।।

माधो!कृष्ण ना भये दस—बीस।
इक अकेले नंदलाल,जे गोपियन के ईश।।
रास रचावत,मन के भावत।
माखन—मिश्री के भोग लगावत।।

माधो!कृष्ण ना भये दस—बीस।
रथ के आगे, सोये गोपियां।।
आंखों से झर—झर बहतीं असुआं।
नैन खुले और कृष्ण समाये।।

माधो!कृष्ण ना भये दस—बीस।
कृष्ण जुदाई,मन नाही भाये।।
जैसे यम हमें लेने को आए।
रुक जाओ,नैनन कृष्ण समाए।।

माधो!कृष्ण ना भये दस—बीस।
राह रोके और रोवत गोपियां।।
कभी रथ के आगे सोवत गोपियां।
ऐसा जुल्म करो मत कोई।।

माधो!कृष्ण ना भये दस—बीस।
कृष्ण बुझावत,बलिराम समझावत।।
लाख मनावन,गोपियन लौटावन।
गोपियां भूमि परे लोटियावत।।

माधो!कृष्ण ना भये दस—बीस।
समयचक्र गति चलती जाए।।
राधा आगे खड़ी हो जाए।
कान्हा अब तो रुकि जाओ।।

माधो!कृष्ण ना भये दस—बीस।
तब माधो अब रथ से उतरे।।
राधे को समझावे बिटिया मान मेरी बात।
जेहि कारण जन्म लिया,उहां ही वो जात।।

माधो!कृष्ण ना भये दस—बीस।
कंस वध कर वो फिर आवेंगे।।
मात—पिता का कर्ज उतारेंगे।
एही बात सुनि राधे हटी।

माधो!कृष्ण ना भये दस—बीस।
रथ हांकि मथुरा चले श्रीकृष्ण ईश।।
मथुरा में अब बजी बधइयां।
आई गए अब कृष्ण—कन्हैया।।

—अनीश कुमार उपाध्याय

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