ये मंजिल,ये राहें,ये हमको बताएं।
थकना नहीं है तुझको,चलता जा राहें।।
मंजिल मिलेगी,ये उम्मीद रखना।
लक्ष्य को पाने की,मन में जिद रखना।।
रास्ते जटिल हैं,पथरीली हैं राहें।
तुझको पाना है मंजिल,मुश्किल हो लाख चाहें।।
थोड़ी सी दिक्कत से,तू क्यों घबराये।
ये दिक्कत भी तुझको,इतना बताए।।
लक्ष्य है तुझको पाना,संकट चाहें लाख आए।
रास्ते में समुद्र हो,चाहें हिमालय खड़ा हो जाए।।
बढ़ना है तुझको, अपने लक्ष्य की ओर।
पाना है तुझको,मंजिल का हर छोर।।
बिजली चाहें कड़के,टूट पड़े आसमान।
आग का दरिया हो,पर मन में रखना तूफान।।
मंजिल को पाना,बढ़ते ही जाना।
रास्ते के कंकड़ को,चुनते तुम जाना।।
मंजिल मिलेगी,ये विश्वास रखना।
अपने हौसलों पर,पूरा यकीन रखना।।
बढ़ते ही जाना,तुम ना बिल्कुल थकना।
लक्ष्य पाने की, मन में जिद रखना।।
लाख संकट भी तेरे,रस्ते ना रोक पाएं।
तेरे हौसलों के आगे,आसमां शीश झुकाए।।
आग का गहरा दरिया भी,शीतल जल बन जाए।
तू खुद कहर बन छा जा,संकट कैसे टिक पाए।।
जैसे राहों में गलियां होती,पौधों में केवल कलियां ना होतीं।
फूलों में जैसे,कांटे हैं होते,रस्ते में वैसे कंकड़ भी होते।।
तेरी राहों को,मंजिल मिलेगी,तब जाके तेरी तपस्या पूरी होगी।
पूरा इत्मिनान रखना,संकट वाली राहों का पूरा मजा चखना।।
बढ़ते ही जाना,तुम ना बिल्कुल थकना।
मंजिल मिलेगी,पूरा यकीन रखना।।
लक्ष्य को पाने की,मन में जिद रखना।
गम जाएगा,खुशियां आएंगी,महकेगा तेरा अंगना।।
फिर जो खुशी का सैलाब होगा।
जो भी तब होगा,लाजवाब होगा।।
आंखों में आंसू तब भी तो होंगे।
ये खुशियों के आंसू,पर गम ना होगा।।
मंजिल पाने की,खुशियों को कैसे?
तब तुम बांट पाओगे ऐसे।।
जैसे सुदामा को,कृष्ण मिले थे।
जैसे शबरी को,राम मिले थे।।
मंजिल को पाने की,खुशियां ना पूछो।
दिल है चहकता,मन है उल्लसता।।
तब तुम पाओगे,पूरी दुनिया अपनी।
कहीं गम ना होगा,केवल खुशियां ही होंगी।।
—अनीश कुमार उपाध्याय
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