रविवार, 27 अप्रैल 2014

बढ़े चलो—बढ़े चलो










आज वक्त है पुकारता।
हुं—हुं कर हुंकारता।।
कर्म पथ पर बढ़े चलो तुम।
कभी बाधाओं से न हटो तुम।।

बढ़े चलो—बढ़े चलो।
वक्त की आवाज सुन चले चलो।।
कर्म पथ से डिगो नहीं।
कदम—कदम बढ़ाते चलो।।

वक्त की पुकार सुनो।
जीत की गिनती गिनो।।
बढ़े चलो—बढ़े चलो।
कर्म पथ पर बढ़े चलो।।

दुश्मनों की छाती दलो।
गीत फतह के गाते चलो।।
बढ़े चलो—बढ़े चलो।
तुम कहीं रुको नहीं।।

तुम कभी झुको नहीं।
जीतना है मंजिल तुम्हें।।
बढ़े चलो—बढ़े चलो।
शत्रुदल की छाती पर।।

चढ़े चलो—चढ़े चलो।
बढ़े चलो—बढ़े चलो।।
मुसीबतें जो राह की।
कचलते चलो,कुचलते चलो।।

दुश्मनों का सीना चीर दो।
बहुत धर लिए धीर तो।।
अब तुम उसको पीर दो।
वक्त की पुकार सुनो।।

बढ़े चलो—बढ़े चलो।
शेर की तरह दहाड़ते चलो।।
पर्वतों को कर दो खंड—खंड।
नदियों की दिशा मोड़ दो।।

चढ़े चलो—बढ़े चलो।
तुम्हें नहीं है रुकना।।
दुश्मन के आगे झुकना।
शत्रु का मान मर्दन करो।

बढ़े चलो—बढ़े चलो।
अब सीमा पार चले चलो।।
दुश्मन को भी पता चले।
अब वो फिर खता न करे।।

चढ़े चलो—बढ़े चलो।
फतह हासिल करके मानो।।
जीत तुम निश्चित जानो।
शत्रु वेधो बानो—बानो।।

—अनीश कुमार उपाध्याय

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