रविवार, 27 अप्रैल 2014

मन गाना गाए











जागो..जागो..जागो,रात गई सूरज उग आया।
कागा बोला,कोयल बोली,मुर्गे ने भी बाग लगाया।।
जो सोया,वो खोता है, जो जागा वो पाया।
सिद्ध पुरुष और संतो ने यही बात बतलाया।।

सूरज की पहली लाली देख,जो इंसान जग जाता है।
सुख—वैभव कदमों में होता,अच्छी सेहत पाता है।।
रोग—व्याधि सब मिट जाते,लंबी आयु पाता है।
जो देर तक सोया रहता,अपना सबकुछ खोता है।।

सफल राह पर चलने को,जल्दी तुम्हें जागना होगा।
एक बार अजमाकर देखो,सारे रोग को भागना होगा।।
झूठ—फरेब से दूर रहकर,सच्चाई पथ पर चलना होगा।
नींद देखो फिर गहरी होगी,चिंता—फिकर कोई ना होगी।।

सारे काम समय पर होंगे,वहीं होगा जो तुम चाहोगे।
यही हकीकत है मेरे भाई,वहीं काटोगे,जो बोओगे।।
कर्म पथ पर आगे बढ़ो,अच्छा फल तुम पाओगे।
जो मेरी बात फिर भी ना समझे,तब तुम पछताओगे।।

जाग जाओ सूरज उग आया,आसमां पर लाली छाई।
मुरझाए कमलदल में भी,नवजीवन संचार ले आई।।
कहीं उंचे पर्वत खड़े,कहीं खूब गहरी है खाई।
देखो तो हर कोने में, सूरज ने किरणें पहुंचाई।।

सूरज उग आया, काली—काली रात गई।
कल जो हुआ उसे बिसराओ,बीती अब वो बात भई।।
नवउर्जा से नये जीवन का,अब तुम संचार करो।
बीती बातें बिसारकर,नये सिरे से विचार करो।।

किसी सफर की यात्रा, पहले कदम से होती शुरुआत।
किसी पेड़ की सृजना, सीधे नहीं होई जात।।
बीज पड़त,अंकुर फूटत, फिर उगत हैं उसमें पात।
माली सींचत, कोड़त—रोपत, तब बने वृक्ष विशाल।।

एक समय ऐसा भी आए, ग्रस जाए उसको भी काल।
कर्म पथ पर आगे तुम बढ़ो,मत पूछो कोई सवाल।।
कर्म करोगे,फल मिलेगा,इतना तुम निश्चित जानो।
बुरे कर्म का बुरा नतीजा, अच्छे का अच्छा मानो।।

जागो अब भी देर ना हुई,करो नई शुरुआत।
कर्मपथ पर आगे बढ़ने की,अब सोचो केवल बात।।
राह में जितने रोड़े आएंगे, कैसे करोगे आघात।
चक्रव्यूह रचने वालों को,कैसे दोगे तुम मात।।

दिन ढलेगा,सूरज डूबेगा,आएगी काली रात।
कर्मपथ पर बढ़ते ही रहना,कट जाएगी सारी रात।।
दिन निकलेगा,सूरज उगेगा,मन में रहे विश्वास।
चाहें खड़ा पर्वत हो जाए,चाहें उगे कटीली घास।।

जब कभी जीवन में,घनघोर अंधेरा छा जाए।
जब जीवन पथ पर,कोई बात समझ ना आए।।
समझो कि सवेरा दूर नहीं,बस केवल सूरज उग आए।
सूरज निकलेगा,दुख विसरेगा,मन तो अब गाना गाए।।

—अनीश कुमार उपाध्याय

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