मन बंजारा, वक्त का मारा।
तुझे पुकारे,आजा—आजा।।
मन गति,दीया की जलती बाती।
हवा का झोंका,लौ को झुकाती।।
मन बंजारा, हवा के जैसा।
तेरी गति,दीया की बाती।।
हवा वक्त का है इक झोंका।
संभल जा वरना,खाएगा धोखा।।
मन बंजारा,पानी जैसा।
दुनिया उसकी,जिसका पैसा।।
ये तन तेरा,बुलबुले जैसा।
हुआ ना किसी,तो तेरा कैसा!
मन बंजारा,आकाश जैसा।
इक चांद है,नगण्य तारों में।।
काली अमावस्या,गुल हुआ चांद।
जीवन वैसे,दिन—रात है जैसे।।
मन बंजारा,धरती जैसा।
जैसी मेहनत,काटो वैसा।।
भाई—भाई में आग लगाए।
खुशियों को सारी,ये जलाए।।
मन बंजारा,भंवरा जैसा।
फूल चूसकर,रस उड़ जाए।।
फूल बेचारा,क्या कर पाए।
फिर भी हंसकर,जीवन बिताए।
मन बंजारा,शीशे जैसा।
सामने जो आए,अक्स वैसा।।
लाख सुंदरता,तू चढ़ाए।
वक्त उसे भी मिट्टी बनाए।।
मन बंजारा,रास्ते जैसा।
उस पर राही चलता जाए।।
मंजिल आए,रास्ता छूट जाए।
यहीं मुसाफिर पूरा थक जाए।।
मन बंजारा,पेड़ जैसा।
पंथी आए,छाया पाए।।
गरीब घर का,चूल्हा जलवाए।
श्मसान में देह को राख बनाए।।
मन बंजारा,लोहे जैसा।
शत्रु वार को खुद झेल जाए।।
थोड़ा चूके तो मौत लाए।
कभी ढाल,भाला कहलाए।।
मन बंजारा, वक्त को समझे।
मन की गति,कोई समझ ना पाए।।
जो समझे वो ज्ञानी कहलाए।
भवसागर से पार हो जाए।।
—अनीश कुमार उपाध्याय
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