जिंदगी का ऐ मन ऐतबार कर।
बड़ी हसीं है ये दुनिया,ना इंकार कर।।
कोई जंग जीती नहीं जाती,हार मानकर।
फिर शुरू कर कोशिश,जीत जानकर।।
पा लेगा तू मंजिल,ये ऐतबार कर।
छोड़ दोगे ये दुनिया,मान ले अगर।।
दिल में होगा गम,आंसू बहेंगे झर—झर।
उलझन है तो हल भी होगा,तू यकीं कर।।
हौसलों के दम पर,दुनिया जाती जीती।
बिना दिल में डरके,होती नहीं प्रीती।।
यही बात बतलाती,दुनिया की नीति।
जीते के साथ रहने की,रही सदा रीति।।
सारे फसाने छोड़कर,हकीकत पर यकीं कर।
मिल जाएगी मंजिल,कोशिश जो करे अगर।।
वो जिंदगी ही क्या,जो जिये मर—मर।
पाओगे जो मंजिल,हो जाओगे अमर।।
राह की बाधाओं को,अब तू पार कर।
मुसीबत जो लाख आए,चलता जा निडर।।
आंधी—तूफान भी,हट जाएंगे घबराकर।
जीत मिलेगी तुझको,तू इसका यकीं कर।।
डर—डरकर किसी को जीत नहीं मिलती।
वक्त से पहले कभी कली नहीं खिलती।।
उगते सूरज की किरणे,अंधेरे को चीरती।
लाख मुसीबत बाद ही मंजिल है मिलती।।
मन के हारे हार है,मन के जीते जीत।
यही सदा रही है,चारो युग की रीत।।
दुनिया के सारे कवियों ने गाए यही गीत।
अब उसको बिसरा,कहानी गई वो बीत।।
जीते के पीछे दुनिया,हारे का सहारा कोई नहीं।
अपने दम पर खड़ा हो जा,जीत मिलेगी कहीं ना कहीं।।
हर हार की वजहों का,तैयार कर खाता—बही।
दांतों में जहर रखकर,छिपकर बैठा रहता अहि।।
वक्त का इंतजार कर,तू लौटेगा जीतकर।
मन को तू मजबूत और इरादे फौलाद कर।।
हिम्मत अबकी फिर बांध,सांसों को खींचकर।
कोई तुझे हरा नहीं सकता,लौटेगा तू जीतकर।।
मंजिल पाने की मन में तू जिद कर।
कदम—कदम बढ़ाता जा,चलता जा राह पर।।
लक्ष्य पाने के लिए,योगी घूमे नगर—नगर।
फिर तू कैसे लौट सकता,भला निराश होकर।।
जीत मिलती उसी को,जिसके सपनों में जान होती।
मुर्दों की क्या भला कहीं पहचान होती।।
बागों में फूल खिलने से पहले,कलियां हैं होती।
मर्द ही आंसू पीते हैं,औरतें हैं रोतीं।।
—अनीश कुमार उपाध्याय
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